बिस्तर पर लेटे हर पल बीमारी की तड़प और शरीर के एक-एक अंग का साथ छोड़ना। इलाज होने के बाद भी डॉक्टर, नर्स और परिजन हर कोई पीड़ा को समझ रहा था। मगर अफसोस सालाना करोड़ों रुपये का इलाज होने के कारण सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था मूकदर्शक थी।
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