दो जून की रोटी भी ठीक से नहीं कमा पाते, खेती के लिए जमीन नहीं, खाने को अन्न और रहने के लिए पक्के घर नहीं। जिंदगी की जंग लड़ने के जज्बे पर सरकारों की वादाखिलाफी भारी पड़ रही है।
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